रोमी साम्राज्य में अनेक प्रान्तों में से मकिदुनिया एक प्रमुख प्रांत था, और थिस्सलुनीके उसका मुख्य नगर था। फिलिप्पी नगर से आने के बाद पौलुस ने यहाँ एक कलीसिया की स्थापना की। पौलुस के मसीही संदेश के कारण, गैर-यहूदी यहूदी धर्म में रुचि लेने लगे, जिससे यहूदी समुदाय में जलन उत्पन्न हुई और विरोध प्रारम्भ हो गया। इस कारण पौलुस को थिस्सलुनीके छोड़कर बिरीया जाना पड़ा। बाद में, जब पौलुस कुरिन्थुस पहुँचा, तब उसके सहकर्मी तीमुथियुस के द्वारा उसे थिस्सलुनीके की कलीसिया के हालात के बारे में समाचार मिला।
यह समाचार मिलने के बाद, पौलुस ने थिस्सलुनीकियों के नाम यह पहली पत्री लिखी। इस पत्री का उद्देश्य वहाँ के मसीहियों को उत्साहित करना और उनके विश्वास को पुनः आश्वस्त करना था। पौलुस उनके विश्वास और प्रेम के विषय में धन्यवाद देता है और उन्हें अपने जीवन की याद दिलाता है, जो उसने उनके बीच बिताया था। इसके बाद वह मसीह के पुनरागमन से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देता है, जैसे कि एक विश्वासी जो मसीह के पुनरागमन से पहले मर जाता है, क्या वह आने वाले जीवन का भागी होगा? और मसीह का पुनरागमन कब होगा? पौलुस उन्हें यह सिखाता है कि मसीह की प्रतीक्षा करते हुए वे अपने दैनिक कार्यों में लगे रहें।
सुसमाचार का सारांश:
भूमिका: १:१
धन्यवाद और स्तुति: १:२—३:१३
मसीही आचार-व्यवहार संबंधी उपदेश: ४:१–१२
मसीह के पुनरागमन के विषय शिक्षा: ४:१३—५:११
अंतिम उपदेश: ५:१२–२२
उपसंहार: ५:२३–२८
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